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सरकार अब नहीं कर सकती हर निजी संपत्ति पर कब्ज़ा! इस मामले में Supreme Court ने दे दिया ऐतिहासिक फैसला

मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच ने यह फैसला दिया. उन्होंने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए इन पर सरकार का कब्ज़ा करना ठीक नहीं होगा.

नई दिल्ली – सरकार सभी निजी संपत्तियों पर कब्ज़ा नहीं कर सकती. यह फैसला एक बड़े संवैधानिक मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, जिसमें 9 जजों की बेंच ने 1978 से अब तक के कई अहम फैसलों को पलट दिया है. मामला निजी संपत्ति के अधिग्रहण को लेकर था, यानी क्या सरकार किसी व्यक्ति की संपत्ति को अपनी आवश्यकता के लिए ले सकती है? इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि सरकार केवल तब ही निजी संपत्ति पर कब्ज़ा कर सकती है, जब वह संपत्ति वास्तव में ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ का हिस्सा है. यानी, सभी निजी संपत्तियां समुदाय का हिस्सा नहीं मानी जा सकतीं.

CJI चंद्रचूड़ और 9 जजों की पीठ का फैसला

मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच ने यह फैसला दिया. उन्होंने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए इन पर सरकार का कब्ज़ा करना ठीक नहीं होगा. इस फैसले ने समाजवादी विचारधारा से जुड़े कुछ पुराने फैसलों को पलटते हुए स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में नहीं ले सकती, जैसा कि 1978 के बाद के कुछ फैसलों में कहा गया था.

पलटे गए 1978 के बाद के कई फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से उन फैसलों को पलट दिया जिनमें यह कहा गया था कि सरकार ‘जनहित’ के नाम पर किसी भी निजी संपत्ति पर कब्ज़ा कर सकती है. जस्टिस कृष्णा अय्यर के एक पुराने फैसले को भी खारिज कर दिया गया, जिसमें यह माना गया था कि सभी निजी संपत्तियां सरकार के नियंत्रण में आ सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 1960 और 70 के दशकों में समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर एक झुकाव था, लेकिन 1990 के दशक से भारत ने एक बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था अपनाई है. अब देश की विकास की दिशा बाजार-उन्मुख नीति की ओर बढ़ी है और यह किसी खास आर्थिक विचारधारा से प्रेरित नहीं है.

इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 31C का भी उल्लेख किया गया. इसमें कहा गया कि संसद ने जो संशोधन किए थे, उनका उद्देश्य राज्य की शक्ति को बढ़ाना था, न कि यह कि सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जाए.

क्या था विवाद?

यह मामला महाराष्ट्र राज्य से जुड़ा था, जहां 1986 में एक संशोधन किया गया था, जिसमें प्राइवेट बिल्डिंग के अधिग्रहण का अधिकार राज्य को दिया गया था. इस संशोधन के खिलाफ मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों के संघ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि यह संशोधन संविधान के खिलाफ है और निजी संपत्ति पर कब्ज़ा करने की कोशिश है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ का क्या अर्थ है, इस पर भी विभिन्न न्यायधीशों ने अलग-अलग राय दी है. यह विवाद संविधान के 39(B) अनुच्छेद से जुड़ा है, जो समाज के भले के लिए संसाधनों के वितरण की बात करता है, लेकिन इस पर स्पष्टता की कमी थी. कोर्ट ने कहा कि संसाधनों का स्वामित्व और बंटवारा ऐसा होना चाहिए कि आम लोगों की भलाई हो, लेकिन निजी संपत्तियों पर सरकार का कब्ज़ा नहीं हो सकता.

Navin Dilliwar

Editor, thesamachaar.in

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