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शराब घोटाले में पूर्व आबकारी मंत्री को 14 दिन की जेल, हर महीने दो करोड़ रुपये कमीशन मिलने का आरोप ! पढ़े ख़बर

– – पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को आज सात दिन की रिमांड के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।

– आरोप है कि कवासी को हर महीने दो करोड़ रुपये का कमीशन मिलता था।

– छापेमारी और बैंक डिटेल की गहन जांच के बाद ईडी को मनी ट्रेल का भी पता चला है।

 

रायपुर। छत्तीसगढ़ के कोंटा से विधायक और पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। उन्हें पहले ईडी ने सात दिन की रिमांड पर लिया था।

रिमांड की ये अवधि पूरी होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने लखमा को मंगलवार को कोर्ट में पेश किया। लखमा पर 2,161 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में शामिल होने का आरोप है। आरोप है कि कवासी को 72 करोड़ रुपये मिले हैं। हर महीने दो करोड़ कमीशन की राशि मिलती थी।

लखमा ने किया इंकार –

हालांकि कवासी लखमा ने इन आरोपों से इंकार कर दिया है। कोर्ट से निकलने के बाद उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासियों की आवाज को बंद कर रही है। आदिवासियों की आवाज उठाने पर डबल इंजन की सरकार जेल में डाल रही है। जो हो रहा वो गलत है।

 

लखमा ने करोड़ों रुपये के कमीशन की बात को झूठा बताते हुए कहा कि मेरे घर में एक रुपए, एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है। 6-6 बार चुनाव जीता हूं। विधानसभा में मैंने सवाल उठाए। अंतिम सांस तक मेरी लड़ाई जारी रहेगी

 

पूर्व सचिव है मास्टरमाइंड

  • शराब घोटाले में सेवानिवृत्त पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड को मास्टरमाइंड बताया गया है। ईडी ने अपने दस्तावेजों में पूरे घोटाले का खाका खींचा है और ढांड को पूरे घोटाले का सरगना बताया।
  • ईडी ने न्यायालय में प्रस्तुत रिमांड नोट में दावा किया है कि सेवानिवृत्त आईएएस ढांड को भी इस घोटाले की राशि मिली है। ईडी के मुताबिक जेल में बंद सेवानिवृत्त आइएएस अनिल टुटेजा, कारोबारी अनवर ढेबर और एपी त्रिपाठी ढांड के निर्देश पर काम कर रहे थे।

लेन-देन की हो रही जांच

ईडी ने लखमा के वित्तीय लेन-देन की भी जांच की है, जिसमें मनी ट्रेल का भी पता चला है। लखमा तक यह पैसे पहुंचाने वाले कन्हैयालाल कुर्रे, जगन्नाथ उर्फ जग्गू, जयंत देवांगन को भी बुलाया जाएगा और उनसे पूछताछ की जाएगी।

 

आरोप है कि 560 रुपये में सप्लाई की जाने वाली शराब को 2880 रुपये की एमआरपी पर बेचा जाता था। सिंडीकेट द्वारा मिलीभगत कर इसकी कीमत बढ़ाकर 3,840 रुपये कर दी जाती थी। इसमें सबका कमीशन फिक्स रहता था।

 

Navin Dilliwar

Editor, thesamachaar.in

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