7 जून 2007 को तमिलनाड़ु के नागूर में दरगाह के बाहर एक लड़की बहुत बुरी हालत में मिली थी। नाम था निशा नूर जो साउथ फिल्मों की फेमस एक्ट्रेस थीं और 1995 में अचानक गायब हो गई थीं। 23 जुलाई 2007 को निशा की मौत हो गई थी। 15 साल बाद दैनिक भास्कर ने उस NGO को खोज निकाला, जिसने 2007 में निशा के आखिरी दिनों में उसकी देखभाल की और मरने के बाद उसे दफनाया।
निशा की कहानी उस दौरान खूब सुर्खियों में थी, जब वो दरगाह के बाहर से मिली थी। फिल्मों में काम ना मिलने के कारण प्रोस्टिट्यूशन में आई और फिर 12 साल बाद उस हालत में मिली जिसमें उसे पहचानना भी मुश्किल था। शरीर में कीड़े पड़ गए थे, सिर्फ हड्डियों का ढांचा ही रह गया था। हालत ऐसी थी कि कुछ दिनों तक ही जिंदा रखा जा सकता था क्योंकि उसे एड्स भी था।
हमने परत-दर-परत निशा की जिंदगी की पड़ताल की। उसके अच्छे-बुरे सारे पलों को खंगाला और उससे जुड़े लोगों से बातें भी कीं। तब निशा की सारी कहानी सामने आई कि वो कैसे फिल्मों में आई, फिल्में छोड़ वेश्यावृत्ति क्यों शुरू की, परिवार ने उससे कोई संबंध क्यों नहीं रखा।
आज की अनसुनी दास्तानें में पढ़िए निशा की जिंदगी की कहानी…..
पिता जो अब ज्यादा बोल नहीं पाते, चल-फिर नहीं सकते
हमने सबसे पहले तमिलनाड़ु के NGO और पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशन मुस्लिम मुनेत्रा कड़गम से सम्पर्क किया। NGO के चेन्नई हेड अल्ताफ अहमद से बात की। हेड ऑफिस में निशा नूर को लेकर ज्यादा जानकारियां थी नहीं, उन्होंने हमें NGO के उस व्यक्ति तक पहुंचाया जो 25 सालों से वहां काम संभाल रहे थे और निशा को हॉस्पिटल लाए थे। इनका नाम था जफरुल्लाह। उन्होंने हमारी बात निशा नूर के पिता जब्बार नूर से करवाई, जो जिंदगी के आठवें दशक में हैं, ज्यादा बोल और चल-फिर नहीं पाते। उन्होंने खालिस तमिल में हमें निशा के बारे में बताना शुरू किया, जो जफरुल्लाह ने ही ट्रांसलेट किया।
आगे की कहानी जो, जफरुल्लाह और जब्बार नूर ने बताई।
निशा की मां हमें छोड़कर भाग गई थीं….. पिता जब्बार की जुबानी
निशा नूर का जन्म 18 सितंबर 1962 में तमिलनाडु के नागापट्टिनम के पास नागूर में हुआ था। निशा के पिता जब्बार भी उन बातों से अनजान थे जो निशा के साथ हुआ। लेकिन, निशा के फिल्मों में आने से पहले की कहानी जब्बार जानते थे। उन्होंने बताया – जब निशा छोटी थी, तब ही उसकी मां गांव में आए कुछ फिल्म इंडस्ट्री वालों के लिए हमें छोड़कर चली गई थीं। वो निशा को भी साथ ले गई थी। गांव छोड़ने के बाद दोनों कभी लौटकर नहीं आए। फिल्मों में आने के बाद भी कभी निशा ने हमारी खबर नहीं ली और ना कभी हमसे संपर्क करने की कोशिश की। आखिरी बार मैंने उसके बारे में तब सुना था, जब मेरे बेटे सहूर ने उसे दरगाह के बाहर देखा, लेकिन मैंने उसकी शक्ल आज तक नहीं देखी।
आगे की कहानी हम सुनाते हैं…
मां इंडस्ट्री के लोगों के साथ भाग आईं तो निशा को भी फिल्मों में जगह मिल गई, लेकिन इसके लिए इन्हें कास्टिंग काउच से भी गुजरना पड़ा। कई रिपोर्ट्स में ये खुलासा हुआ है कि कुछ प्रोड्यूसर्स के साथ निशा ने काम्प्रोमाइज किया था। फिल्म में इनका लीड रोल नहीं होता था, लेकिन फिर भी इनकी खूबसूरती लोगों की नजर में चढ़ गई। निशा ने 1980 में आई मंगला नायागी से तमिल फिल्मों में कदम रखा। इनकी दो और फिल्में मुयालक्कू मून काल और इलामई कोलम इसी साल रिलीज हुईं। फिर इन्हें लगातार फिल्मों के ऑफर मिलने लगे।