Navratri 2024 : नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री का विधिपूर्वक पूजन, जानें इसका विशेष महत्व!
समाचार डेस्क : देशभर में नवरात्रों का पर्व शुरू हो चुका है। नवरात्रि का पर्व हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार में प्रमुख माना जाता है, जो पूरी तरह से मां को समर्पित है। इस दौरान भक्त 9 दिन और 9 रात तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। इसकी शुरूआत आज भक्तों ने नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना से की। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ अद्वितीय स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है तथा इस दिन ही कलश स्थापना व घट स्थापना की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
शैलपुत्री को देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों में प्रथम माना गया है। हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इसे शैलपुत्री के नाम से जाना गया है। कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया, उसमें समस्त देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। सती यज्ञ में जाने के लिए कहने लगी, लेकिन भगवान शिव ने बिना निमंत्रण यज्ञ में जाने से मना किया लेकिन सती के प्रबल आग्रह पर उन्होंने अनुमति दे दी। लेकिन वहां जाने पर सती का अपमान हुआ। इससे दुखी होकर सती ने स्वयं को यज्ञ अग्नि को भस्म कर लिया। इससे क्रोधित होकर शिव ने यज्ञ को तहस नहस कर दिया। वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाई।
मां शैलपुत्री विधि पूजन
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन भक्त ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और साफ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद, एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध किया जाता है और फिर उस पर मां दुर्गा की मूर्ति, तस्वीर या फोटो स्थापित की जाती है। पूरे परिवार के साथ विधि-विधान से कलश स्थापना की जाती है।
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए मंत्र
मंत्रों का जाप करते समय मन को एकाग्र करना बहुत जरूरी है। मंत्रों के जाप से मन शांत होता है और मां शैलपुत्री की कृपा प्राप्त होती है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रुपेण संस्थिता । नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ।।