
कार्तिक वदि तेरस से अमावस (दीपावली) तक निरन्तर तीन विशेष का पर्व मनाये जाते हैं, उसी प्रकार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तथा द्वितीया को भी विशेष प्रकार के कुछ उत्सव व समारोह आयोजित होते हैं। इन पर्वो को पंचपर्व कहते है। मानव जीवन के साथ तथा समाज एवं राष्ट्रीय धारा के साथ गहरा सम्बन्ध है। सर्वप्रथम धन-तेरस के बारे में चर्चा करते हैं। प्रत्येक पक्ष में तीज और तेरस का दिन शुभ माना जाता है। कहावत है-बिन पूछा मुहुरत भला, या तेरस या तीज। किन्तु कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की तेरस बड़ी शुभऔर लाभकारी मानी जाती है। पता नहीं, इसे धन-तेरस नाम देने के पीछे क्या कल्पना रही होगी। मेरे विचार में इसका सम्बन्ध दीपावली पर लक्ष्मी पूजन करने से पूर्व धन देवता की पूजा-अर्चना करके उसे प्रसन्न करने से हो सकता है। भारत में हिन्दू समाज में कार्तिक कृष्ण तेरस को सूर्यास्त के पश्चात् लक्ष्मी पूजन होता है और घर के द्वार पर यम का एक दिया जलाया जाता है। पुराणों की मान्यता ऐसी है कि पितृपक्ष में पितृगण अपने परिवारजनों को देखने के लिए अदृश्य रूप में भूलोक में आते हैं। वे सबको देखकर इस दिन वापस अपने पितृलोक को लौट जाते हैं। इसलिए इस दिन एक दिया जलाकर पितृगण को विदा दी जाती है। यह एक रूढ़ लोकमान्यता है। भारतीय पुराणों में धन-तेरस के पीछे आयुर्वेद के प्राण-प्रतिष्टदायक धन्वन्तरि के प्रादुर्भाव की कथा जुड़ी हुई है। महाभारत और पुराणों के अनुसार यह माना जाता है कि देव-दानवों ने मिलकर जब समुद्र-मंथन किया तो उसमें चौदह दुर्लभ रत्न प्राप्त हुए। उसी समुद्र-मंथन में धन्वन्तरि हाथ में अमृत कलश लिए प्रकट हुए। धन्वन्तरि चिकित्सा विज्ञान के आदि पुरुष माने जाते हैं। धन्वन्तरि शब्द का अर्थ है-शल्पशाख में पारंगत पुरुष। किन्तु सुश्रुत संहिता के अनुसार आयुर्वेद के आठों अंगों का निपुण वैद्य धन्वन्तरि कहा जाता है। कुछ पुराणों के अनुसार काशी का राजा दिवोदास धन्वन्तरि नाम से प्रसिद्ध हुआ जो आयुर्वेद का महान विद्वान था। धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक आज की भाषा में फेमिली डॉक्टर माने जाते हैं। महाभारत आदि पुराणों के अनुसार कार्तिक वदी 13 के दिन धन्वतरि प्रकट हुए इसलिए यह धन तेरस धन्वन्तरि के जन्म-दिन के रूप में मनाई जाती है। धन्वन्तरि के हाथ में अमृत कलश यह सूचित करता है कि संसार में रोग के विषाणुओं का नाश करने के लिए उसने औषधि रूप अमृत प्रदान किया। समस्त संसार को आधि-व्याधि, रोग आदि से इसे मुक्त करके मानब को सुखी और बनाना ही धन्वन्तरि का लक्ष्य है। वैद्य प्राणियों के शरीर के रोगों की चिकित्सा कर उन्हें शान्ति पहुंचाता है, भगवान प्राणियों के आध्यात्मिक, मानसिक रोगों की चिकित्सा करते हैं, उनके जन्म-मरण, जरा-शोक की व्याधि दूर करने वाले महावैद्य हैं। वैद्य शब्द का अर्थ ही है-जो दूसरों की वेदना-पीड़ा को जानता हो, वह है वैद्य। दूसरों की पीड़ा नहीं समझने वाला अथवा दूसरों के दुःख-दर्द में भी जिसका दिल नहीं पसीजता हो, वह वैद्यराज नहीं। दूसरों की पीड़ा से बेपरवाह धन का लोभी वैद्य या डॉक्टर वैद्य नहीं, यमदूत होता है। ऐसे लोभी वैद्यों के लिए कवि कहता है- हे यमराज के बंधु वैद्यराज, तुम्हें दूर से ही नमस्कार करता हूँ। तुम वैद्यराज नहीं, यमराज से भी बढ़-चढ़कर हो, क्योंकि यमराज तो सिर्फ प्राणी के प्राणों का ही हरण करता है, किन्तु तुम तो प्राण भी ले लेते हो और धन भी ले जाते हो। आज धन-तेरस धन्वन्तरि का जन्म-दिन हमें इस आदर्श की प्रेरणा देता है कि संसार में आये हो तो प्रेम का, सेवा का अमृत बाँटो, दूसरों के दुःख-दर्द-पीड़ा दूर करो। इन आदर्शों पर चिन्तन करो और अपने जीवन को इन आदर्शों पर चलाने का संकल्प करो-यह आज धन-तेरस की प्रेरणा है। धन तेरस का अर्थ-धन की वर्षा से नहीं है। लोग आज के दिन चाँदी व ताँबे-स्टील के बर्तन खरीदकर धन-तेरस मनाते हैं, किन्तु असली धन तेरस है-दुखियों के दुःख-दर्द दूर करने का संकल्प लेना। संस्कृत में इसका अर्थ होता है-धन + ते रसः-तुम्हारा रस यानी प्राण, मनोभाव धन्य हो जाये, दूसरों की सेवा करके तुम्हारा जीवन-रस कृतार्थ हो जाये तो समझो आज धन तेरस हो गई। यदि आज के दिन आपने एक भी दुःखी प्राणी का दुःख-दर्द मिटा दिया। किसी अस्पताल में जाकर रोगियों की सार-सँभाल ले ली, उन्हें सान्त्वना दी और उनको कुछ सुख-शान्ति पहुँचाई तो समझ लो आपकी धनतेरस वास्तव में धन्य तेरस हो गई। अन्यथा धन की पूजा करके चाहे तेरस मनाओ या चौदस, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। निःस्वार्थ और निरपेक्ष भाव से जितना बन सके दूसरों की सेवा-सहायता का संकल्प करना और उसके लिए अपनी धन-सम्पत्ति का सदुपयोग करना-यह लक्ष्मी के आमन्त्रण की पूर्व भूमिका है, बैकग्राउण्ड है। जो परोपकार करेगा लक्ष्मी स्वयं उसके द्वार पर आकर दस्तक देगी। को सुखी और स्वस्थ बनाना ही धन्वन्तरि का लक्ष्य है। वैद्य प्राणियों के शरीर के रोगों की चिकित्सा कर उन्हें शान्ति पहुंचाता है, भगवान प्राणियों के आध्यात्मिक, मानसिक रोगों की चिकित्सा करते हैं, उनके जन्म-मरण, जरा-शोक की व्याधि दूर करने वाले महावैद्य हैं। वैद्य शब्द का अर्थ ही है-जो दूसरों की वेदना-पीड़ा को जानता हो, वह है वैद्य। दूसरों की पीड़ा नहीं समझने वाला अथवा दूसरों के दुःख-दर्द में भी जिसका दिल नहीं पसीजता हो, वह वैद्यराज नहीं। दूसरों की पीड़ा से बेपरवाह धन का लोभी वैद्य या डॉक्टर वैद्य नहीं, यमदूत होता है। ऐसे लोभी वैद्यों के लिए कवि कहता है- हे यमराज के बंधु वैद्यराज, तुम्हें दूर से ही नमस्कार करता हूँ। तुम वैद्यराज नहीं, यमराज से भी बढ़-चढ़कर हो, क्योंकि यमराज तो सिर्फ प्राणी के प्राणों का ही हरण करता है, किन्तु तुम तो प्राण भी ले लेते हो और धन भी ले जाते हो। आज धन-तेरस धन्वन्तरि का जन्म-दिन हमें इस आदर्श की प्रेरणा देता है कि संसार में आये हो तो प्रेम का, सेवा का अमृत बाँटो, दूसरों के दुःख-दर्द-पीड़ा दूर करो। इन आदर्शों पर चिन्तन करो और अपने जीवन को इन आदर्शों पर चलाने का संकल्प करो-यह आज धन-तेरस की प्रेरणा है। धन तेरस का अर्थ-धन की वर्षा से नहीं है। लोग आज के दिन चाँदी व ताँबे-स्टील के बर्तन खरीदकर धन-तेरस मनाते हैं, किन्तु असली धन-तेरस है-दुखियों के दुःख-दर्द दूर करने का संकल्प लेना। संस्कृत में इसका अर्थ होता है-धन + ते रसः-तुम्हारा रस यानी प्राण, मनोभाव धन्य हो जाये, दूसरों की सेवा करके तुम्हारा जीवन-रस कृतार्थ हो जाये तो समझो आज धन तेरस हो गई। यदि आज के दिन आपने एक भी दुःखी प्राणी का दुःख-दर्द मिटा दिया। किसी अस्पताल में जाकर रोगियों की सार-सँभाल ले ली, उन्हें सान्त्वना दी और उनको कुछ सुख-शान्ति पहुँचाई तो समझ लो आपकी धनतेरस वास्तव में धन्य तेरस हो गई। अन्यथा धन की पूजा करके चाहे तेरस मनाओ या चौदस, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। निःस्वार्थ और निरपेक्ष भाव से जितना बन सके दूसरों की सेवा-सहायता का संकल्प करना और उसके लिए अपनी धन-सम्पत्ति का सदुपयोग करना-यह लक्ष्मी के आमन्त्रण की पूर्व भूमिका है, बैकग्राउण्ड है। जो परोपकार करेगा लक्ष्मी स्वयं उसके द्वार पर आकर दस्तक देगी।