राष्ट्रपति भवन छोड़कर भागे गोटबाया राजपक्षे: पांच रिश्तेदारों के साथ मिलकर लूटा श्रीलंका, इन 5 वजहों से देश हुआ खस्ताहाल
श्रीलंका में महीनों से जारी आर्थिक संकट से परेशान जनता का प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास घेर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे आवास छोड़कर भाग खड़े हुए।
इससे पहले मई में जब उग्र भीड़ ने राजपक्षे के छोटे भाई और पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के कोलंबो स्थित सरकारी आवास को घेर लिया था, तो महिंदा ने परिवार समेत भागकर नेवल बेस में शरण ली थी।
इस एक्सप्लेनर में चलिए जानते हैं कि आखिर कौन हैं राजपक्षे खानदान, जिसे श्रीलंका को भुखमरी तक पहुंचाने का जिम्मेदार माना जा रहा है? श्रीलंका के आर्थिक संकट की बड़ी वजहें क्या हैं…
श्रीलंका को डुबोने वाले ताकतवर राजपक्षे परिवार को जानिए
अप्रैल तक श्रीलंका में सरकार में राजपक्षे परिवार के पांच लोग शामिल थे। इनमें राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे, सिंचाई मंत्री चामल राजपक्षे और खेल मंत्री नामल राजपक्षे थे। इनमें से गोटबाया को छोड़कर बाकी सब इस्तीफा दे चुके हैं।
एक समय श्रीलंका के नेशनल बजट के 70% पर इन राजपक्षे भाइयों का सीधा कंट्रोल था। राजपक्षे परिवार पर 5.31 अरब डॉलर यानी 42 हजार करोड़ रुपए अवैध तरीके से देश से बाहर ले जाने का आरोप है। इसमें महिंदा राजपक्षे के करीबी अजित निवार्ड कबराल ने अहम भूमिका निभाई थी, जो सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के गवर्नर थे।
1. महिंदा राजपक्षे
- 76 साल के महिंदा राजपक्षे समूह के चीफ और कुछ महीनों पहले तक प्रधानमंत्री थे। उन्होंने बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के बीच 10 मई को इस्तीफा दे दिया था।
- वह 2004 में प्रधानमंत्री रहने के बाद 2005-2015 तक राष्ट्रपति रहे थे। इसी दौरान भाई गोटबाया राजपक्षे को तमिलों के आंदोलन को कुचलने का आदेश दिया था।
- महिंदा के शासनकाल में श्रीलंका और चीन की करीबी बढ़ी और उसने चीन से इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए 7 अरब डॉलर का लोन लिया।
- खास बात ये रही कि ज्यादातर प्रोजेक्ट्स छलावा साबित हुए और उनके नाम पर जमकर भ्रष्टाचार हुआ।
2. गोटबाया राजपक्षे
- पूर्व सैन्य अधिकारी रहे गोटबाया 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने। वह रक्षा मंत्रालय में सेक्रेटरी समेत कई अहम पद संभाल चुके हैं।
- 2005-2015 के दौरान बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के राष्ट्रपति रहने के दौरान डिफेंस सेक्रेटरी रहते हुए तमिलों अलगाववादियों यानी LTTE को क्रूरता से कुचल दिया था।
- गोटबाया की टैक्स में कटौती से लेकर, खेती में केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल पर बैन जैसी नीतियों को वर्तमान संकट की वजह माना जा रहा है।
3. बासिल राजपक्षे
- 71 साल के बासिल राजपक्षे फाइनेंस मिनिस्टर थे। श्रीलंका में सरकारी ठेकों में कथित कमीशन लेने की वजह से उन्हें ‘मिस्टर 10 पर्सेंट’ कहा जाता है।
- उन पर सरकारी खजाने में लाखों डॉलर की हेराफेरी के आरोप लगे थे, लेकिन गोटबाया के राष्ट्रपति बनते ही सभी केस खत्म कर दिए गए।
4. चामल राजपक्षे
- 79 साल के चामल अप्रैल महिंदा के बड़े भाई हैं और शिपिंग एंड एविएशन मिनिस्टर रह चुके हैं। अब तक वह सिंचाई विभाग संभाल रहे थे।
- चामल दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके के बॉडीगार्ड रह चुके हैं।
5. नामल राजपक्षे
- 35 साल के नामल महिंदा राजपक्षे के बड़े बेटे हैं। 2010 में महज 24 साल की उम्र में वह सांसद बने थे। अब तक वह खेल और युवा मंत्रालय संभाल रहे थे।
- उन पर मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं, जिससे नामल इनकार करते रहे हैं।
चलिए अब जानते हैं उन 5 प्रमुख वजहों को, जिनसे श्रीलंका आर्थिक दलदल में फंसा….
श्रीलंका 1948 में अपनी आजादी के बाद से सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है। श्रीलंका में लोगों को रोजमर्रा से जुड़ी चीजें भी नहीं मिल पा रही हैं या कई गुना महंगी मिल रही हैं। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है, जिससे वह जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रहा है।
देश में अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियों से लेकर दवाओं तक की कमी है। पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करनी पड़ी है। देश में 13-13 घंटे की बिजली कटौती हो रही है। देश का सार्वजनिक परिवहन ठप हो गया है, क्योंकि बसों को चलाने के लिए डीजल ही नहीं है।
1. कर्ज ने बिगाड़ा लंका का खेल
पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग ही किया।
- 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं।
- 2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की।
- इसके अलावा उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है।
- 2019 में एशियन डेवलेपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक ‘जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था’ कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना।
- श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का रहा है।
- श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए बुरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है।
- पिछले 2 वर्षों में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घटा है। इस साल मई अंत तक श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में केवल 1.92 अरब डॉलर ही बचे थे, जबकि 2022 में ही उसे लगभग 4 बिलियन डॉलर का लोन चुकाना है।
- ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका को खाने, पेट्रोल-डीजल और दवाओं जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले 6 महीने में 6 अरब डॉलर की जरूरत होगी।
- श्रीलंका में महंगाई दर मई में 39% तक पहुंच गई। वहीं, पिछले साल से श्रीलंका की करेंसी में 82% की गिरावट आ चुकी है।
- एक डॉलर की कीमत करीब 362 श्रीलंकाई रुपए तक पहुंच गई है और एक भारतीय रुपए की कीमत 4.58 श्रीलंकाई रुपए हो गई है।
2. राजपक्षे का टैक्स में कटौती का फैसला पड़ा उल्टा
2019 में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, लेकिन इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। एक अनुमान के मुताबिक, इससे श्रीलंका की टैक्स से कमाई में 30% तक कमी आई, यानी सरकारी खजाना खाली होने लगा।
1990 में श्रीलंका की GDP में टैक्स से कमाई की हिस्सा 20% था, जो 2020 में घटकर महज 10% रह गया। टैक्स में कटौती के राजपक्षे के फैसले से 2019 के मुकाबले 2020 में टैक्स कलेक्शन में भारी गिरावट आई।
3. आंतकी हमले और कोरोना महामारी ने टूरिज्म सेक्टर को डुबोया
- श्रीलंका में अप्रैल 2019 में ईस्टर संडे के दिन राजधानी कोलंबो में तीन चर्चों पर हुए आतंकी हमले में 260 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
- आतंकी हमले ने श्रीलंका की टूरिज्म इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाया। रही-सही कसर इसके कुछ महीनों बाद ही आई कोरोना महामारी ने पूरी कर दी।
- टूरिज्म सेक्टर श्रीलंका में विदेशी मुद्रा कमाने का तीसरा सबसे बड़ा माध्यम है। 2018 में श्रीलंका में 23 लाख टूरिस्ट आए थे, लेकिन ईस्टर आतंकी हमले की वजह से 2019 में इनकी संख्या में करीब 21% की गिरावट आई और 19 लाख टूरिस्ट ही आए।
- उसके बाद कोरोना पाबंदियों की वजह से 2020 में टूरिस्ट की संख्या घटकर 5.07 लाख ही रह गई। 2021 में श्रीलंका में 1.94 लाख ही टूरिस्ट आए। श्रीलंका आने वाले टूरिस्टों में सबसे ज्यादा भारत, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के होते हैं।
4. श्रीलंका के दो ताकतवर राजनीतिक परिवारों के भ्रष्टाचार और गलत फैसले
- श्रीलंका की दो सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टियां हैं- श्रीलंका फ्रीडम पार्टी, जिसके मुखिया हैं- मैत्रीपाला सिरिसेना। दूसरी पार्टी है श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना पार्टी- जिसके मुखिया हैं महिंदा राजपक्षे।
- 2015 से 2019 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे सिरिसेना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। 2018 में उनके चीफ ऑफ स्टाफ और अधिकारियों को रिश्वत लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था। सिरिसेना राजपक्षे परिवार पर भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते रहे हैं।
- ताकतवर राजनीतिक परिवार माने जाने वाले राजपक्षे के गलत फैसले और भ्रष्टाचार ने भी श्रीलंका की हालत पतली की। पिछले दो दशक से इस ताकतवर राजनीतिक परिवार की श्रीलंका में तूती बोलती रही है।
5. खेती में केमिकल फर्टिलाइजर्स पर बैन
2021 में गोटबाया राजपक्षे सरकार ने ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के नाम पर श्रीलंका में खेती में केमिकल फर्टिलाइजर्स और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। ये फैसला गलत साबित हुआ और अनाज उत्पादन में भारी गिरावट आई। उत्पादन घटने से अनाज के दाम आसमान छूने लगे और और मई में फूड-इंफ्लेशन 57.4% पर पहुंच गया जबकि नॉन-फूड इंफ्लेशन बढ़कर 30.6% हो गया।