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चंद मिनटों में 300 करोड़ लीटर से ज्यादा बारिश:क्या वाकई बादल फट जाता है? अमरनाथ-केदारनाथ जैसे इलाकों में अकसर क्यों आती है ऐसी आपदा?

अमरनाथ गुफा के पास शुक्रवार शाम करीब 5 बजे अचानक बारिश शुरू हुई। ऐसी बारिश मानो आसमान में पानी से भरी कोई बहुत बड़ी पॉलीथीन फट गई हो। जब तक लोग समझ पाते कि बादल फट गए हैं, तब तक वहां लगे कैंप बह गए। अब तक 15 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और करीब 40 लोग फंसे हैं।

7 सवालों के जरिए समझिए बादल फटने का पूरा साइंस…

सवाल 1: ये बादल फटना होता क्या है? क्या वाकई बादल फट जाता है?

जवाब: छोटे से इलाके में बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होने को बादल फटना कहते हैं।

इसमें बादल फटने जैसा कुछ नहीं होता। हां, ऐसी बारिश इतनी तेज होती है जैसे बहुत सारे पानी से भरी एक बहुत बड़ी पॉलीथीन आसमान में फट गई हो। इसलिए इसे हिंदी में बादल फटना और अंग्रेजी में cloudburst के नाम से पुकारा जाता है।

अब बादल फटने को गणित से समझते हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जब अचानक 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे या उससे कम समय में 100mm या उससे ज्यादा बारिश हो जाए तो इसे बादल फटना कहते हैं। कई बार चंद मिनटों में ये बारिश हो जाती है। यहां अचानक शब्द के भी मायने हैं। आमतौर पर बादल कब फटेगा इसका पहले से अनुमान लगाना मुश्किल होता है।

सवाल 2: बादल फटने के इस गणित को क्या और आसान तरीके से समझा जा सकता है?

जवाब: बिल्कुल, इसके लिए सबसे पहले 1mm बारिश का मतलब समझते हैं। देखिए, 1mm बारिश होने का मतलब है कि 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े यानी 1 वर्ग मीटर इलाके में 1 लीटर पानी बरसना। अब इस गणित को बादल फटने की परिभाषा पर फिट कर दें तो जब भी 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े इलाके में 100 लीटर या उससे ज्यादा पानी बरस जाए, वो भी एक घंटे या उससे भी कम समय में, तो समझिए कि इस इलाके पर बादल फट गया।

बस 100 लीटर!! यों, तो आपको गणित बहुत छोटा लग रहा होगा।

इसकी भयावहता का अंदाजा लगाने के लिए अगर इस गणित को 1 वर्ग मीटर के बजाय 1 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फिट कर दें तो, जब भी 1 वर्ग किलोमीटर इलाके में एक घंटे से कम समय में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाए तो समझिए वहां बादल फट गया। यानी अगर अमरनाथ में बादल फटा है तो उसके 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे से भी कम समय में 200 से 300 करोड़ लीटर से ज्यादा पानी बरस गया होगा।

इसको और आसान भाषा में समझते हैं। भारत में हर शख्स औसतन 170 लीटर पानी रोज इस्तेमाल करता है। इस हिसाब से गुणा भाग करें तो बादल फटने पर जितना पानी 1 घंटे से भी कम समय में बरस जाता है उतना पानी करीब 20 लाख लोग 9 दिनों तक इस्तेमाल करते हैं। भारत के करीब 300 शहरों की आबादी 20 लाख के आस-पास है।

आगे बढ़ने से पहले देखिए बादल फटने का एक वायरल वीडियो। इसे वंडर ऑफ साइंस नाम के ट्विटर हैंडल ने पोस्ट किया है। कैप्शन में लिखा है कि ये ऑस्ट्रिया के लेक मिल्स्टैट का है, जिसे पीटर मायर ने अपने कैमरे में कैद किया है।

सवाल 3: बादल फटने और और तेज बारिश में क्या अंतर है?

जवाब: जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं वैसे तो इसमें कोई अंतर नहीं, लेकिन जब 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे से कम समय मे 100 mm या इससे ज्यादा बारिश हो जाए तो इसे बादल फटना कहते हैं।

तीव्रता को छोड़ दें तो दोनों में सबसे बड़ा अंतर ये है कि बारिश या तेज बारिश का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, लेकिन बादल फटने का नहीं। यानी बादल फटने पर अचानक और बहुत तेजी से बारिश होती है। इसके अलावा बादल आमतौर पर पहाड़ी इलाकों भी फटता है। अगर भारत में कहें तो आमतौर पर बादल हिमालय में फटते हैं।

सवाल 4: अब ये बताइये कि बादल फटता क्यों है?

जवाब: सबसे पहले बादलों को जानते हैं। बादल, सूरज की गर्मी के चलते मोटेतौर पर समुद्र पर ऊपर बने भाप के गुबार होते हैं, जो समुद्र की नम हवाओं के साथ बहकर धरती के ऊपर आते हैं। घने बादलों वाली ये नम हवा जब समुद्र से धरती पर पहुंचती हैं तो हम कहते हैं मानसून आ गया।

अब आते सीन नंबर दो पर और इससे बारिश को समझते हैं। हम सभी ने देखा होगा कि फ्रिज का ठंडा पानी किसी गिलास या जग में भरने पर उसकी सतह पर पानी जमा हो जाता है। ठीक ऐसे ही जब ऊपरी वातावरण में बादल ठंडे होते हैं तो बूंदों में बदलने लगते हैं। इसे ही बारिश कहा जाता है।

देखिए होता ये है कि मानसूनी हवाओं वाले बादल हिमालय से टकराकर धीरे-धीरे भारी मात्रा में जमा हो जाते हैं और एक ऐसा समय आता है कि किसी इलाके ऊपर मंढरा रहे ये बादल पानी से भरी एक थैली तरह फट जाते हैं। यानी बहुत तेजी से एक छोटे से इलाके में बरस पड़ते हैं। यही तो है बादल फटना।

सवाल 5: बादल अकसर बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे ऊंचे इलाकों के आस-पास क्यों फटते हैं?

जवाब: बद्रीनाथ 3300 मीटर और केदारनाथ 3583 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में हैं। जैसा कि ठीक पिछले सवाल के जवाब में बता चुके हैं कि हिमालय से टकराकर मानसूनी बादल धीरे-धीरे भारी मात्रा में जमा हो जाते हैं और बादल फटने का माहौल बन जाता है। यही वजह है कि अक्सर बादल ऐसे हिमालयी इलाकों में फटते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि बादल मैदानी इलाकों में नहीं फट सकते।

सवाल 6: किन महीनों में बादल फटने का सबसे ज्यादा डर होता है?

जवाब: भारत के सबसे दक्षिणी राज्य केरल में मानसून आमतौर पर एक जून को पहुंचता है। समुद्री नमी और बादलों वाली ये हवाएं जुलाई के पहले सप्ताह तक हिमालय तक पहुंचती हैं। मानसून भी जुलााई, अगस्त और सितंबर के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय होता है। यही वजह है कि हिमालय हो या मैदानी इलाके, बादल अक्सर जुलाई, सितंबर और अक्बूटर में फटते हैं।

सवाल 7: इंसानों की वजह से मौसम में होने वाले बदलाव यानी क्लाइमेट चेंज का बादल फटने से कोई लेना-देना है?

जवाब: कई स्टडीज बताती हैं कि क्लाइमेट चेंज की वजह से बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं और उनकी तीव्रता भी। मई 2021 में वर्ल्ड मिटियोरॉजिकल ऑर्गनाइजशन ने एक रिपोर्ट में बताया कि अगले पांच सालों के दौरान दुनिया का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। तापमान बढ़ने की दर के हिसाब से हिमालय के इलाके में बादल फटने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। बादल फटने की बढ़ती घटनाओं के चलते अचानकर बाढ़ आना, पहाड़ दरकना, मिट्टी का कटान और जमीन धंसने के मामले भी बढ़ते जाएंगे।

The Samachaar

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